एक लंबे समय से बाबाजी जिस विधा का प्रयोग सामाजिक चेतना के लिए करते आ रहे है वो है चित्र प्रदर्शनी. अयोध्या आंदोलन के समय से बाबाजी द्वारा रेल के डिब्बों, दीवारों को चित्र दीर्घाओं का स्वरूप देने कि शुरुआत हुई उसके स्वरुप में परिवर्तन अवश्य हुआ....पर विभिन्न विषयों को जन सामान्य तक पहुँचाने की कलायात्रा आज भी जारी है. प्रारम्भ में इन चित्रों का स्वरूप रेखाचित्र या कार्टून के रूप में होता था. पर इस विधा की सही रंगीन चित्रों के साथ शुरुआत प्रयाग के माघ मेले में लगी वेद प्रदर्शनी से हुई. जिसे लाखों लोगों ने देखा और सराहा भी. बाद में एकात्मता स्तोत्र, स्वदेशी, गौरक्षा एवं छद्म धर्म निरपेक्षता, धर्मान्तरण, श्रीराम, श्रीराम मंदिर आंदोलन आदि विषयों पर कई प्रदर्शनियां बनी जो विभिन्न समारोहों और शिविरों आदि में लगे जाती रही. धर्म दृष्टि जैसी कुछ प्रदर्शनियों के चित्रों को विश्व हिंदू परिषद द्वारा सेट के रूप में छपवाकर पूरे देश में भेजा एवं प्रदर्शित किया गया. १९९९ में इन प्रदर्शनियों का स्वरूप और भी शोधपरक तथा कलात्मक हुआ. मुंबई में रामकथा के अवसर स्वतंत्र रूप से वनबन्धु श्रीराम तथा दिल्ली में वेद सम्मलेन के अवसर पर लगी प्रदर्शनियों के बाद इस विधा ने विश्वव्यापी स्वरूप ले लिया. तब से एक दो बार को छोड़कर इन विषयवस्तु आधारित चित्र मालाओं का त्रिनिदाद, अमेरिका आदि देशों में ही लगातार प्रदर्शन हो रहा है. त्रिनिदाद एंड टोबेगो के दीवाली मेले में १९९९ में पहली बार वेद प्रदर्शनी के बाद से लगातार हर वर्ष एक नए विषय पर चित्रमाला प्रदर्शित की जाती है. जो इस प्रकार हैं. ये प्रदर्शनियां पहले पेंटिंग्स के रूप में होती थी. परन्तु एक प्रदर्शनी के आग में जल जाने के बाद ये बाबाजी द्वारा कंप्यूटर पर निर्मित की जाने लगी. बाबाजी इन प्रदर्शनियों के साथ हर बार मुख्य द्वार की अलग अलग रूपों में सज्जा भी करते हैं.
For a long time, the medium through which Baba Ji has been creating social awareness is photo exhibition. Since the Ayodhya movement, Baba Ji started converting his photos from railway coaches and walls into photo galleries, and that form definitely changed, but the art journey to take many subjects to the common folks is still continuing. In the early days, the structure of these images was in the form of diagrams or cartoons, but the mode of true color painting started with the exhibition at the Magh Mela of Prayag, which was seen and appreciated by millions of people. Later many exhibitions on human origin, Swadeshi, cow protection, pseudo secularism, religious conversion, Shri Ram, Shri Ram Mandir movement, etc. were made and exhibited at many functions and encampments. Some exhibitions such as ‘Dharma Drishti’ were published by Vishwa Hindu Parishad as a picture book and sent all over the country. In 1999, the form of these exhibitions became more research-oriented and artistic. After they were exhibited during Ram Katha in Mumbai, as independently wandering Shri Ram in forest, and during Veda conference in Delhi, this mode took the off as a global phenomenon. Since then a series of such exhibitions are being held in Trinidad, the U.S., and many other countries almost continuously. After the first exhibition in Diwali Mela of Trinidad and Tobago in 1999, the panorama on new subjectsis exhibited every year. They were Earlier, these exhibitions were used to be in the form of paintings, but after one exhibition was destroyed by fire, Baba Ji started digitizing them. Along with these exhibitions, Baba Ji also helps decorate the main gate at the Diwali Mela.
101, B-wing, Versha co-operative housing society, Tilak Nagar, Chembur, Mumbai(M.H.)-India. Pin-400089